जेनसोल इंजीनियरिंग के खिलाफ कैपिटल मार्केट रेगुलेटर SEBI की जांच के सामने आए नतीजों के बाद अब कंपनी के खिलाफ अन्य कई एजेंसियों की जांच शुरू होने की संभावना बढ़ गई है। सेबी से जुड़े सूत्रों ने मनीकंट्रोल को पुष्टि की है कि जांच तेज होने वाली है। हो सकता है कि अन्य एजेंसियों भी कंपनी के खिलाफ जांच शुरू कर दें। यह भी हो सकता है कि जेनसोल से जुड़ी सभी एंटिटीज, लिस्टेड और अनलिस्टेड, कंपनी से जुड़े लोग भी जांच के दायरे में आए जाएं।
15 अप्रैल को जारी अंतरिम आदेश में सेबी ने कहा है कि सेबी ने जेनसोल इंजीनियरिंग पर पैसों को डायवर्ट करने, कर्ज का गलत इस्तेमाल करने और संबंधित पक्षों के माध्यम से अपने स्टॉक में ट्रेड को फाइनेंस करने का आरोप लगाया। जेनसोल पर आरोप है कि उसने ईवी खरीद के लिए 200 करोड़ रुपये से अधिक की राशि डायवर्ट की। कंपनी के प्रमोटर्स अनमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी ने राइड हेलिंग स्टार्टअप ब्लूस्मार्ट के लिए नए इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदने के लिए लिए गए लोन को अपने निजी हित के लिए इस्तेमाल किया, जैसे कि गुरुग्राम में लग्जरी अपार्टमेंट की खरीद।
कैसे हेराफेरी करने का आरोप
सेबी की कैलकुलेशन के अनुसार, जेनसोल इंजीनियरिंग को ईवी खरीद के लिए IREDA और PFC से कुल 663.89 करोड़ रुपये का लोन मिला। नियमों के अनुसार, जेनसोल को अपने खुद के फंड से 20% का योगदान करना था, जिससे 6,400 ईवी की खरीद के लिए कुल अपेक्षित निवेश 829.86 करोड़ रुपये हो गया। सेबी के अंतरिम आदेश में कहा गया है कि लेकिन जेनसोल ने 4,704 ईवी खरीदे, जिनकी लागत 567.73 करोड़ रुपये थी। इस तरह 262.13 करोड़ रुपये का हिसाब नहीं है। रेगुलेटर्स जांच कर सकते हैं कि क्या ईवी की खरीद के लिए जरूरी 20% अतिरिक्त मार्जिन का पालन किया गया था।
सेबी ने पैसे की हेराफेरी और कामकाज संबंधी खामियों के चलते जेनसोल इंजीनियरिंग और प्रमोटर्स- अनमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी को अगले आदेश तक सिक्योरिटी मार्केट से प्रतिबंधित कर दिया है। सेबी ने अनमोल और पुनीत सिंह जग्गी को अगले आदेश तक जेनसोल में डायरेक्टर या प्रमुख मैनेजेरियल रोल संभालने से भी रोक दिया है। इसके अलावा जेनसोल इंजीनियरिंग लिमिटेड (जीईएल) को उसके द्वारा घोषित स्टॉक स्प्लिट को रोकने का भी निर्देश दिया गया है। इसके अलावा सेबी ने जेनसोल और उसके सहयोगियों का फोरेंसिक ऑडिट करने का आदेश भी दिया है।
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अगर साबित हो गए आरोप तो शुरू हो सकती है पैरलल जांच
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आरोप साबित हो जाते हैं, तो कॉरपोरेट धोखाधड़ी, मनी लॉन्ड्रिंग और आपराधिक विश्वासघात कानूनों के तहत एक पैरलल जांच शुरू हो सकती है। एयू कॉरपोरेट एडवाइजरी के अक्षत खेतान का कहना है कि यह सब आपराधिक जांच की वजह बन सकता है। यह मामला सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय जैसी एजेंसियों का ध्यान खींच सकता है।
खेतान के मुताबिक, “जब IREDA और PFC जैसी पीएसयू से उधार लिए गए पैसे को कथित तौर पर निजी फायदे के लिए जटिल और लेयर्ड लेनदेन के माध्यम से डायवर्ट किया जाता है, तो यह कई कानूनों के उल्लंघन की ओर इशारा करता है। यह मामला न केवल कंपनीज एक्ट के तहत कॉरपोरेट धोखाधड़ी को दर्शाता है, बल्कि सीबीआई द्वारा आपराधिक विश्वासघात की जांच और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पीएमएलए के तहत मनी लॉन्ड्रिंग की जांच की भी मांग कर सकता है।”
फंड ट्रेल और अकाउंट बैलेंस के आधार पर, सेबी ने पाया कि पीएफसी द्वारा मंजूर किए गए लोन के घोषित अंतिम इस्तेमाल को दरकिनार करते हुए 96.69 करोड़ रुपये जेनसोल इंजीनियरिंग के प्रमोटर और प्रमोटर से जुड़ी एंटिटीज को डायवर्ट किए गए। सेबी ने यह भी पाया कि जेनसोल ईवी लीज प्राइवेट लिमिटेड (जेनसोल इंजीनियरिंग की एक सहायक कंपनी) द्वारा इरेडा से लिए गए 171.30 करोड़ रुपये के लोन में से 37.5 करोड़ रुपये अनमोल सिंह जग्गी को ट्रांसफर किए गए। सेबी के आदेश में कहा गया है कि वह जग्गी को 37.50 करोड़ रुपये के कथित ट्रांसफर की आगे जांच करेगा।
गो-ऑटो से ईवी खरीद की भी हो सकती है जांच
कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि अगर यह सच पाया जाता है, तो यह एक गंभीर मामला हो सकता है। इसके अलावा जेनसोल द्वारा गो-ऑटो (ईवी की एक सप्लायर) को 775 करोड़ रुपये के ट्रांसफर की भी जांच हो सकती है। इस ट्रांसफर के बदले जेनसोल को 4,704 ईवी मिले, जिनकी लागत 567.73 करोड़ रुपये थी। एक कॉर्पोरेट कानून विशेषज्ञ ने कहा, “फंड डायवर्जन, डायवर्टेड फंड के माध्यम से अपनी कंपनी के शेयरों की खरीद, लोन राशि का गलत इस्तेमाल और संबंधित पक्ष के लेन-देन के आरोपों की जांच कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय या गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) द्वारा की जा सकती है। SFIO कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की जांच शाखा है।”
शेयरों में ट्रेडिंग को लेकर क्या की गड़बड़
सेबी ने पहली नजर की जांच में पाया है कि जेनसोल और उसके प्रमोटर्स/प्रमोटर से संबंधित एंटिटीज ने जेनसोल के शेयरों में ट्रेडिंग के लिए वेलरे नामक एक कथित रिलेटेड पार्टी को फंड दिया। यह कंपनीज एक्ट के सेक्शन 67 का उल्लंघन करता है। यह सेक्शन कंपनियों को अपने खुद के शेयर खरीदने या अपने खुद के इश्यूज का सब्सक्रिप्शन लेने के लिए वित्तीय मदद देने से तब तक रोकता है, जब तक कि शेयर पूंजी में कमी को मंजूरी नहीं दी जाती। यह कंपनियों को अपने स्टॉक की कीमत को आर्टिफीशियल तरीके से बढ़ाने से रोकने के लिए है। सेबी ने अपने आदेश में यह भी पाया कि “जेनसोल ने जेनसोल के 97,445 इक्विटी शेयरों के सब्सक्रिप्शन के लिए जेनसोल वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड (जेनसोल की एक प्रमोटर) को लेयर्ड ट्रांजेक्शन के माध्यम से फंड मुहैया कराया था।”
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पैसे का डायवर्जन
सेबी ने आगे आरोप लगाया कि जेनसोल से हासिल हुए पैसे को संदिग्ध रिलेटेड पार्टी वेलरे में ट्रांसफर किया गया और फिर प्रमोटर परिवार के निजी खर्चों के लिए इस्तेमाल किया गया। इन खर्चों में एक सेलिब्रिटी फिनटेक फाउंड के मालिकाना हक वाली कंपनी में 50 लाख रुपये के शेयरों की कथित खरीद, गोल्फ किट के लिए 26 लाख रुपये, ज्वैलरी या एक्सेसरीज के लिए 17.28 लाख रुपये, रियल एस्टेट के लिए पेमेंट और क्रेडिट कार्ड बकाया का भुगतान शामिल है।
हालांकि, कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सेबी को कंपनी के फाउंडर्स के खिलाफ अचानक और कठोर कदम नहीं उठाने चाहिए, क्योंकि इससे माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स को नुकसान हो सकता है। फिनसेक लॉ एडवायजर्स के पार्टनर अनिल चौधरी का कहना है, “मुझे नहीं लगता कि किसी को एकपक्षीय आदेश से बहुत अधिक नतीजे निकालने चाहिए। जांच अभी भी पेंडिंग है और केवल प्रथम दृष्टया मामला ही बना है। सेबी को कुछ चिंताजनक मिल सकता है, लेकिन कहानी का दूसरा पक्ष सुने बिना किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए।”